एक ज़माने में उत्तर प्रदेश के बेताज बादशाह माने जाने वाले समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता सह पूर्व मंत्री आज़ाम खान 23 महीने के बाद जेल से रिहा हुए। अज़ाम खान उत्तर प्रदेश के सीतापुर जेल में बंद थे और ज़मानत मिलने पर उनके समर्थक पुरे लाव लश्कर के साथ उन्हें लेने पहुंचे। उसी दौरान भीड़ बहुत बढ़ गयी जिसको देखते हुए पुलिस की तैनाती बढ़ा दी गयी। आज़ाम खान को लेने सैंकड़ों गाड़ियां पहुंची थी, इसके अलावा उन्हें लेने उनके बेटे आबिद और अब्दुला भी पहुंचे थे। भीड़ बढ़ते देख पुलिस ने ट्रैफिक नियमों का हवाला देते हुए लगभग 70 से ज़्यादा गाड़ियों का चालान कर दिया। ऐसे में लगभग 1 लाख से ऊपर का चालान आज़म खान के समर्थको को देना पड़ा।
हो गयी बहस
पुलिस के इस रवैय्ये को देखते हुए आज़म खान एक पुलिस अधिकारी से बहस करने लगते हैं। वह पुलिस से कहते हैं की जितने लोग यहां आये हैं, उनमे से सारे लोग उनके समर्थक या परिवार के नहीं बल्कि आम लोग हैं। ऐसे में उन्हें इस तरह से परेशान करना बिलकुल सही नहीं है। जबकि पुलिस ने जवाब में ये कहा की सभी गाड़ियां ‘नो पार्किंग’ ज़ोन में लगाई गयी थी और यही कारण है की पुलिस ने उनका चालान काटा है।
नहीं लड़ सकते चुनाव
गौरतलब है की आज़म खान और उनकी पत्नी तंजीन और उनके बेटे अब्दुला के चुनाव लड़ने में कानूनी बाधाएं आ रही है। ऐसे में उनके परिवार से ये तीनों चुनाव लड़ने के लिए फिट नहीं बैठते। ऐसे में ये कयास लगाए जा सकते हैं की उनके परिवार से ही नए चेहरे सामने आ सकते हैं जो आने वाले समय में उत्तर प्रदेश की चुनावी बाग़डोर संभाल सकें। लोगों का ऐसा मानना है की आज़म के बेटे आबिद या उनकी बहु सीदारा चुनाव में उतर सकती हैं। राजनितिक जानकार ऐसा मानते हैं की आज़म खान अपनी सियासी किरदार को अपने परिवार से बाहर जाने नहीं देंगे, ऐसे में नए चेहरे उनके परिवार से ही आने की उम्मीद है।
आज़म खान के बसपा में जाने की अटकलों को भी उन्होंने साफ कर दिया और सीधे तौर पर खुद को सपा का बताया है। ऐसे में विरोधी पार्टी का कहना है की वह सपा में रहे या बसपा में जाएं, जहां भी जाएंगे उस पार्टी की हार तय कर देंगे। ऐसे में देखना ये होगा की आज़म खान जेल से आने के बाद किस तरह अपनी सियासी पकड़ को मज़बूत करते हैं और किस तरह उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेश की राजनीति में एक माहिर राजनितिक खिलाड़ी का किरदार निभाते हैं?

