क्या सांई बाबा सच में मुस्लिम थे? सांईधाम ट्रस्ट के प्रमुख ने इसलिए मांगी थी शंकराचार्य से माफ़ी
सोशल मीडिया में अक्सर ये विवादित मुद्दा रहा है की सांई बाबा मुस्लिम थे या हिन्दू? समय-समय पर हिन्दू धर्म के वरिष्ठ साधू-संतों ने भी इस बारे में खूब चर्चा की है। हिन्दुओं को अक्सर सांई बाबा की पूजा आराधना के लिए रोका भी जाता है। सांई के विरोधियों का कहना है की सांई बाबा मुस्लिम फ़क़ीर थे और उनकी पूजा या आरती नहीं होनी चाहिए। जबकि दूसरी ओर सांई बाबा के नाम पर आरती बन गयी है। उनके नाम पर कई मंत्र लिख दिए गए हैं। दूसरी तरफ हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में सांई का कोई उल्लेख नहीं दिखाई देता हैं।
वास्तव में हिन्दू धर्म ग्रंथों में कहीं पर सांई बाबा का उल्लेख नहीं मिलता है। जबकि मार्किट में उनकी तस्वीर पर मन्त्र लिखे होते हैं और उनके नाम पर कई चालीसा भी चलाई जा रही है। सांई बाबा के नाम से कई ट्रस्ट चलाये जाते हैं जिससे दान में बहुत सारा पैसा भी मिलता है। सांई बाबा के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा ठीक वैसे ही की जाती है जैसे हिन्दू देवी-देवताओं के मंदिरों की होती है। जागरण से लेकर मूर्ति स्थापना तक हिन्दू रीती रिवाज अपनाया जाता है। जबकि प्राप्त जानकारी के अनुसार वह एक मुस्लिम फ़क़ीर थे। ऐसे में हिन्दू साधू-संतों का सांई बाबा पर विरोध करना बढ़ता जा रहा है।
इसी मुद्दे पर ज्योतिष एवं द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के ऊपर सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर किया गया था। इस रिट को दायर करने वाले थे मुंबई-सांई धाम के चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रमुख रमेश जोशी। विवाद यहां पर यही था की सांई बाबा मुस्लिम फ़क़ीर थे या हिन्दू ब्राह्मण? रमेश जोशी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका दो बार खारिज कर दी। इसके बाद इस बात को साबित करने के लिए उन्होंने खुद से व्यक्तिगत अनुसन्धान करवाया।
यह घटना है 2015 के अप्रैल महीने की जिसमे सांई संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रमुख रमेश जोशी ने शंकराचार्य के समक्ष मीडिया के सामने माफ़ी मांगी। जोशी ने ये खुद ही कबूला की सांई बाबा एक मुस्लिम फ़क़ीर थे। प्राप्त दस्तावेज़ों के आधार पर यह घोषणा सभी के समक्ष की गयी की सांई मुस्लिम मज़हब से ताल्लुक रखते हैं।
इसके बाद शंकराचार्य ने सांई बाबा को लेकर कई बाते कहीं। उन्होंने सांई से सम्बंधित चलाए जा रहे फर्जी चालीसा को बंद करने का निवेदन किया और कहा की इससे लोग गुमराह हो रहे हैं। दूसरी ओर सांई धाम से आने वाले सैंकड़ों करोड़ रुपयों को सही जगह पर खर्च कर आम जनों के तकलीफों को कम करने को कहा।
ट्रस्ट प्रमुख रमेश जोशी के द्वारा माफ़ी मांगने के बाद इस बात पर मुहर लग गयी की सांई बाबा एक मुस्लिम फ़क़ीर थे। इससे सम्बंधित दस्तावेज भी सम्बंधित लोगो के पास मौजूद है। जो विवाद एक लम्बे समय से चला आ रहा था वो अनुसन्धान के बाद स्पष्ट हो गया। देश भर में सांई बाबा की मंदिरें हैं और वो आज भी चलाई जा रही है। हिन्दू श्रद्धालुओं की संख्या ज़्यादा है जो सांई बाबा में आस्था रखते है। जबकि इस्लाम मज़हब से ताल्लुक रखने वाले सांई बाबा के गिने-चुने अनुयायी ही हैं।
सांई बाबा के प्रति श्रद्धा रखने वाले हिन्दू श्रद्धालु आज भी गुरूवार के दिन मंदिर में उनके दर्शन के लिए जाते हैं। प्रसाद बनाया जाता है और भजन कीर्तन का भी आयोजन होता है। ऐसे में इसे सही या गलत कहना कहाँ तक उचित है इसका फैसला तो सिर्फ धर्म के अनुयायी या साधू-संत ही कर सकते हैं। आजकल सामान्य तौर पर प्रवचन देने वाले बाबाओं की भी तस्वीर बिकने लगी है और घरो में लोग उनकी पूजा भी करते हैं।