INDIA अलायन्स टूट जाएगा या रहेगा ? लालू कह रहे ‘ऑल इज़ वेल’
INDIA अलायन्स जो पूरी मज़बूती के साथ नरेंद्र मोदी की सरकार को चुनौती देने के लिए तैयारी कर रही है और दूसरी ओर खुद के गठबंधन में कलह की स्थिति पैदा होने लगी है। बीते मंगलवार को दिल्ली के अशोका होटल में हुई INDIA अलायन्स की बैठक में 28 दलों के नेता शामिल हुए। चुनाव के मद्देनज़र किस तरह तैयारी हो और कौन-कौन से फैसले लिए जाएं इस बाबत चर्चा हुई।
हालांकि इस बैठक में खटपट होने की भी खबर आ रही थी। ममता बनर्जी के पीएम उम्मीदवार को लेकर खड़गे का नाम सुझाए जाने पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू यादव नाराज़ दिखे। फिलहाल आधिकारिक रूप से किसी भी नेता का नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर नहीं लिया गया है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने ममता द्वारा सुझाए गये खड़गे के नाम पर अपनी सहमति व्यक्त की। दूसरी ओर खड़गे ने खुद कहा है की अभी किसी भी नाम पर सहमति नहीं बनी है। चुनाव के बाद किसी चेहरे के नाम पर सहमति बनाई जाएगी। महागठबंधन में शामिल जितनी भी पार्टियां है उनकी सहमति खड़गे के नाम पर बनेगी या नहीं इस पर अभी विचार होना बाकी है? दूसरी ओर बिहार के नेताओं ने अपनी नाराज़गी से ये बात साफ़ कर दिया है की खड़गे के नाम पर बिहार के नेता सहमत नहीं हुए हैं। हालांकि सभी नेता दलित प्रधानमंत्री की पैरवी करते ज़रूर दिखाई देते हैं।
दलित कार्ड काम आएगा ?
भारतीय राजनीति में अभी तक कोई भी दलित प्रधानमंत्री नहीं हुआ है। दलित राष्ट्रपति हुए हैं, मौजूदा राष्ट्रपति भी आदिवासी समाज से आती हैं लेकिन दलित प्रधानमंत्री का चेहरा अभी तक कोई भी नहीं है। ऐसे में दलित प्रधानमंत्री का देश को इंतज़ार ज़रूर हो सकता है। शायद यही कारण है की ममता के सुझाव पर केजरीवाल ने भी अपना पासा फेंक दिया है। हालांकि देश में जाति विशेष को लेकर जनगणना नहीं हुई है लेकिन ऐसा अनुमान है की देश में लगभग 25 फीसद आबादी दलित है और ऐसे में दलित प्रधानमंत्री बनना अनिवार्य हो जाता है।
2011 में किये गये जनगणना के हिसाब से देश में सबसे ज़्यादा दलित आबादी वाले चार राज्य है। पश्चिम बंगाल, बिहार, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश। मौजूदा समय में इन प्रदेशों की सरकार की बात करें तो चार में से तीन राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है। वहीं घनी आबादी वाले उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार है। इसके अलावा हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में भी दलितों की कुल आबादी लगभग 20 फीसद या उससे ऊपर है और इन तीन प्रदेशों में से सिर्फ हरियाणा में बीजेपी की सरकार है। ऐसे में दलित कार्ड शायद इनके चुनावी गणित में फिट बैठ सकता है।
खड़गे काम आएंगे या नुक्सान दिलाएंगे ?
पीएम मोदी OBC समाज से आते हैं और बीते 10 सालों में उन्होंने खुद को ‘विकास पुरुष’ की छवि के रूप में स्थापित किया है। हालिया चुनावी नतीजे भी मोदी के नाम पर निकाले गये हैं। गौरतलब है की राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कोई भी मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं था लेकिन सिर्फ मोदी के नाम पर उन दोनों प्रदेशों में बीजेपी को जीत हासिल हुई।
दूसरी तरफ नीतीश कुमार है और वो भी OBC समाज से ही आते हैं। इंडिया गठबंधन की तरफ से वो भी ‘विकास पुरुष’ की छवि निभा सकते थे लेकिन गठबंधन की अंतिम बैठक के दौरान उनकी नाराज़गी ने उनकी उम्मीदवारी पर पानी फेर दिया है। ऐसे में अगर खड़गे को दलित कार्ड का चेहरा बनाया गया तो महागठबंधन को सबसे पहला नुकसान बिहार जैसे बड़े राज्य में उठाना पड़ सकता है। बिहार में 40 लोकसभा सीट हैं जो जीत और हार का अंतर भी बन सकते हैं।
बिहार के पडोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी दलित आबादी की बहुलता है लेकिन स्थिति महागठबंधन के पक्ष में दिखाई नहीं देती है। क्योंकि उत्तर प्रदेश में दलित वोट अब खंडित हो चुका है। पिछले लोकसभा चुनाव में अकेले बीजेपी को 80 में से 62 सीटें मिली थी। इससे साफ़ ज़ाहिर होता है की उत्तर प्रदेश में महागठबंधन बेहतर तरीके से चनाव में प्रदर्शन नहीं कर पाएगी। मौजूदा समय में कांग्रेस का हिंदी भाषी राज्यों में पकड़ काफी कमज़ोर है। दूसरी तरफ कांग्रेसी नेताओं के सनातन धर्म के ऊपर बिगड़े बोल उन्हें नुकसान दिला सकते हैं।
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में मायावती जैसी दलित नेता महागठबंधन के काम आ सकती थी। लेकिन मायावती ने अभी तक महागठबंधन में शामिल होने के फैसले पर सहमति नहीं व्यक्ति की है। हाल ही में मायावती ने आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था जिसमे ये बताया गया था की BSP अकेले चुनाव लड़ेगी। ऐसे में महागठबंधन का इन दो प्रदेशों में प्रदर्शन कैसा होगा इसका आकलन करना मुश्किल नहीं है।