वैसे तो यह खबर हर साल प्रकाश में आती है और जैसा की आप सबने अक्सर देखा होगा की त्योहारों में विशेषकर प्रचार थोड़ा बढ़ जाता है। बात है 2017 की जब मैनफोर्स ने अपने ऐड में नवरात्री और गरबा जैसे शब्दों का इस्तेमाल करता है और उसकी होर्डिंग और बैनर्स पुरे गुजरात प्रदेश के अंदर लगाए जाते हैं। और ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ था बल्कि उसके बाद भी ऐसा कई त्योहारों में हो चुका है। स्वतंत्रता के नाम पर इस तरह की फूहड़ता हर जगह देखने को मिलती है और विशेषकर ऐसा त्योहारों में होता आया है। नवरात्री सिर्फ एक त्यौहार नहीं बल्कि करोड़ों की आस्था का विषय है।
क्यों बढ़ती है कंडोम की बिक्री?
अब सबसे बड़ा सवाल है की ऐड तो एक बहाना है, मार्केटिंग करने के लिए कंपनियां किसी भी हद तक जा सकती हैं लेकिन उसके पीछे सबसे बड़ा कारण है हमारा समाज। नवरात्री एक त्यौहार नहीं बल्कि एक पर्व और अनुष्ठान की तरह है जिसमे हम माता के नौ रूपों की आराधना करते हैं और हर्षोल्लाष के साथ इस पर्व को मनाते हैं, दशमी एक त्यौहार की तरह होता है जिसको हम रावण दहन करके खुशियां मानते हैं। गुजरात के अंदर गरबा नृत्य की परम्परा है जो प्राचीन भी है और काफी अच्छी भी लेकिन पिछले 2 दशकों में हमने ये ध्यान दिया है की आधुनिकता के नाम पर नवरात्रि के पूजा पंडालों में गरबा नृत्य का आयोजन युवाओं के लिए ख़ासा आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है। विशेषकर गुजरात में, हालांकि अब ये सिर्फ गुजरात की परम्परा नहीं रही बल्कि अब देश के कई हिस्सों में इसे बड़े ही हर्ष के साथ किया जाता है। लेकिन ऐसी रिपोर्ट कई बार सार्वजनिक हुई है की गुजरात में नवरात्रि के दौरान कंडोम की बिक्री बढ़ जाती है। ऐसा देखा गया है की गुजरात सहित उत्तर पश्चिमी भारत में 10 से 25 प्रतिशत तक कंडोम की बिक्री बढ़ जाती है।
अगर आप सामान्य रूप में गूगल पर सिर्फ इतना टाइप करेंगे की किस फेस्टिवल में कंडोम ज़्यादा बेचा जाता है तो आपको गूगल तुरंत बता देगा और उससे सम्बंधित कई लिंक्स भी आपको दिख जाएंगे जिसके ज़रिये आप इस खबर की पुष्टि कर पाएंगे। हैरानी की बात ये है की जिस अनुष्ठान में हम माता की पूजा करते हैं और गरबा का नृत्य करके जिस माता को खुश करने की चेष्टा करते हैं उसी दौरान आज के युवा एक-दूसरे से आकर्षित होते हैं। होता क्या है की युवा उस पूजा पंडाल या गरबा नृत्य आयोजन के कार्यक्रमों में जाते हैं और अजनबी लोगों से नज़रे मिलती है और उसी के बाद इस तरह की घटना हो जाती है। अब इसमें सही गलत की परिभाषा सबकी अपनी-अपनी है।
आज के समय में विशेषकर त्योहारों में जहां सभी चीज़ों की आज़ादी उनको दी जाती है, इसलिए यह बस एक मनोरंजन मात्र रह गया है। चाहे वह मूर्ति विसर्जन हो, गरबा नृत्य हो, दीवाली हो या होली। जितने भी त्यौहार या पर्व होते हैं, उन्हें सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन के दृष्टिकोण से देखा जाता है जबकि ऐसा करना हमेशा उचित नहीं होता। सवाल ये है की चेतना का विकास किस उम्र और किस स्तर पर होता है, ये वही जाने?
