आज दशमी के साथ नवरात्री का पर्व समाप्त होता है और दशमी को विजयादशमी के रूप में देखा जाता है। उसके पीछे कारण ये है की इसी दिन भगवान श्री राम ने लंकापति रावण को संहार किया था और धरती को एक पापी और दुराचार आत्मा से मुक्त किया था। इसी को लेकर हर एक साल रावण की प्रतिमा पुरे देश और विदेशों में जलाई जाती है जो बुराई पर अच्छे की जीत का प्रतीकात्मक चित्रण है। रावण बहुत बलशाली था, शास्त्रों के अनुसार उसने कई देवताओं और ग्रह-नक्षत्रों को अपने कैद में रखा हुआ था। उसकी ख्याति उस समय पुरे जगत के साथ-साथ तीनों लोकों में थी लेकिन एक कहानी ऐसी भी है जब वो श्री राम के अलावा अन्य योद्धाओं से भी हार चुका था।
किष्किंधा नरेश बाली
रामायण में एक प्रसंग में आपने किष्किंधा नरेश बाली के बारे में पढ़ा होगा। ये वही बाली हैं जो सुग्रीव के बड़े भाई भी थे। रामायण के एक प्रसंग में ये उल्लेख दिया गया है जिसमे रावण और बाली के बीच युद्ध हुआ था। बाली को एक शक्ति प्राप्त थी जिसमे उसका विरोधी अगर उसके सामने हो तो उसकी आधी ताकत बाली में आ जाती है और बाली अपने विरोधी से डेढ़ गुना अधिक शक्तिशाली हो जाता था। ऐसे ही एक बार रावण बाली से युद्ध करने पहुंचा जिसमे बाली ने रावण को अपनी कांख में दबाकर पुरे समुद्र की परिक्रमा कर ली थी। जो रावण स्वयं बाली से युद्ध करने आ रहा था वह खुद बाली के चंगुल में फंस गया और उसे अपनी जान की भीख तक मांगनी पड़ी थी। स्थिति ऐसी बन पड़ी की रावण के मंत्रियों को भी बाली से विनती करनी पड़ी ताकि बाली उसे छोड़ दे। लेकिन बाली ने उसे तब तक पीड़ित रखा जब तक की वह स्वयं हार ना मान जाए और चरणों में ना गिर जाए।
महादेव और रावण
वैसे तो रावण भगवान् शंकर का बहुत बड़ा भक्त था और उसने ही स्वयं शिव तांडव स्त्रोत की रचना की थी लेकिन अपने बल के मद में चूर रावण ने एक बार कैलाश पर्वत को ही अपने साथ ले जाने की चेष्टा करने लगा। उसके पास इतनी शक्ति थी की वो ऐसा कर सकता था लेकिन वह ये भूल गया था की कैलाश पर्वत स्वयं महादेव का स्थान है। रावण पर्वत को अपने हाथो से उखाड़ने का प्रयत्न करने लगा और उसी दौरान भगवान् शंकर को इसकी आहट हुई और उन्होंने अपनी पैर के अंगूठे से पर्वत को थोड़ा बल दिया। जिसके बाद रावण का हाथ उस पर्वत के नीचे ही दब गया और वह चीत्कार मारकर चिल्लाने लगा। इस घटना के बाद से रावण को ये एहसास हो गया की भगवन शंकर उससे कहीं अधिक शक्तिशाली हैं। जिसके बाद रावण ने महादेव की स्तुति की और बारम्बार अपने किये गलती का एहसास करते हुए क्षमा मांगने लगा जिसके बाद उन्होंने रावण को क्षमा दान दे दिया।
