बिना टिकट यात्रा और फिर पैसे वापस, ऐसे थे पंडित दीन दयाल उपाध्याय

प्रधानमंत्री मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यम्नत्री योगी आदित्यनाथ ने पोस्ट के माध्यम से उनको श्रद्धांजलि अर्पित की है। गौरतलब है की योगी आदित्यनाथ ने ही मुग़लसराय स्टेशन का नाम बदल कर पंडित दीन दयाल उपाध्याय कर दिया था।

एक बेहतर रणनीतिकार और दूरदर्शी नेता पंडित दीन दयाल उपाध्याय की आज पुण्यतिथि है। पंडित जी भले ही बीजेपी से सीधे तौर पर ना जुड़े हों लेकिन आज बीजेपी पार्टी जो इतनी बड़ी और विश्व स्तर की सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है, उन सबमे कही न कही इनका भी योगदान है। आज उनकी पुण्यतिथि पर हम उसने जुडी कुछ रोचक और रहस्यमयी मृत्यु से जुडी घटनाओं को साझा करेंगे। गौरतलब है की उनकी मृत्यु संदेहास्पद स्थिति में हुई थी और आज तक उस विषय में किसी को पता नहीं चल पाया। प्रधानमंत्री मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यम्नत्री योगी आदित्यनाथ ने पोस्ट के माध्यम से उनको श्रद्धांजलि अर्पित की है। गौरतलब है की योगी आदित्यनाथ ने ही मुग़लसराय स्टेशन का नाम बदल कर पंडित दीन दयाल उपाध्याय कर दिया था।

ईमानदार पंडित जी

पंडित जी अक्सर ट्रेन से यात्राएं किया करते थे। एक दीन ऐसे ही वह ट्रेन से कहीं जा रहे थे और उन्हें तुरंत वापस भी लौटना था। जाते वक़्त की टिकट तो उन्होंने ले ली थी लेकिन आते वक़्त की टिकट लेना वो किसी कारण से भूल जाते हैं। ट्रेन पर चढ़ते हैं और अपने गंतव्य स्थान तक वापस लौट जाते हैं। घर लौटने पर उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है की उन्होंने वापसी के समय ट्रेन की टिकेट तो ली ही नहीं थी। अब उन्हें इस बारे में सोच सोचकर बेचैनी होनी शुरू हो जाती है और अगली सुबह इसको लेकर वह रेलवे को एक पत्र लिखते हैं जिसमे वो कहते हैं की उन्होंने वापसी यात्रा की टिकेट किसी कारणवश नहीं ली थी। इसके साथ ही अपनी यात्रा से जुडी सारी जानकारी वह पत्र में लिख देते हैं और उसी पत्र के साथ टिकट के पैसे भेजते हुए रेलवे से माफ़ी मांगते हैं और राशि स्वीकार करने के लिए कहते हैं। ये उस समय की बात है जब लोग इतना ज़्यादा बिलकुल नहीं सोचते थे।

आज के ज़माने में भी कई लोग ऐसे हैं जो बिना टिकट यात्रा करते हैं और उन्हें इस बात का कोई गम नहीं होता। लेकिन पंडित जी जैसे व्यक्तित्व और ज़िम्मेदार व्यक्ति होने के नाते उन्होंने बखूबी अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए राष्ट्रहित के लिए फैसला लिया। यही कारण है की आज भी उनके व्यक्तित्व का गुणगान काम नहीं हुआ है और ऐसे नेता बिड़ले ही पैदा होते हैं जो समाज और राष्ट्र को समर्पित होते हैं और दूसरों को भी प्रेरित करते हैं।

संदेहास्पद मृत्यु

दीन दयाल उपाध्याय जी की मृत्यु भी एक रहस्य है। उनकी मृत्यु 11 फ़रवरी 1968 को आज के दीन दयाल उपाध्या रेलवे स्टेशन (मुगलसराय स्टेशन) पर हुई बताई जाती है। प्राप्त जानकारी के अनुसार पंडित जी 10 फ़रवरी को कालका मेल से लखनऊ से पटना की यात्रा पर थे। वह द्वितीय श्रेणी के एसी डिब्बे में अकेले यात्रा कर रहे थे। यात्रा के दौरान ही वह लापता हो गए। उसी के अगले दीन 11 फ़रवरी को मुग़लसराय स्टेशन के पास उनका शव संदिग्ध अवस्था में रेलवे की पटरियों के पास पड़ा मिला। जिस तरह से उनका शव मिला था, उससे ये साबित होता था की उनकी ह्त्या हुई है। और सबसे हैरानी वाली बात ये है की जब वह लखनऊ से पटना की यात्रा पर थे तो मुग़लसराय स्टेशन पर उतरे ही क्यों? जबकि वो अकेले सफर कर रहे थे तो किसी पर शक करना भी संभव नहीं था।

दुसरा एंगल ये भी निकाला गया की जब उनका शव मिला तब उनके पास से ना तो टिकट थी और ना ही पैसे, तो इसे लूट और उसके बाद ह्त्या करार दिया गया। लेकिन इतने बड़े नेता के साथ इस तरह की घटना वो भी चलती ट्रेन में थोड़ा संदेहास्पद मालुम होता है। हालांकि उनकी ह्त्या के बाद दो लोगों की गिरफ्तारी भी हुई लेकिन कुछ भी साबित नहीं हो पाया। दूसरी तरफ कई राजनेता इसे लूट की बजाये राजनितिक साज़िश और ह्त्या मानते हैं। उसका कारण ये था की जनसंघ की लोकप्रियता काफी बढ़ रही थी और दीन दयाल उपाध्याय जनसंघ के स्तम्भ के रूप में कार्यरत थे। उनके हट जाने से पार्टी कमज़ोर हो जाएगी और विरोधियों को इसका फायदा मिलेगा। अटल बिहारी वाजपेयी ने उनकी मृत्यु को राष्ट्रीय क्षति करार दिया और लाल कृष्ण आडवाणी ने भी ये बात कही की उनकी मृत्यु की जांच कभी स्वतंत्र रूप से नहीं की गयी।

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