असरानी, यह नाम बॉलीवुड के इतिहास के उस सुनहरे पल को हमेशा याद दिलाता रहेगा जिन्होंने अभिनय को एक अलग पहचान और दिशा दी। इन्होने जो भी किरदार निभाए वह या तो अमर हो गए या फिर उसके अभिनय ने जीवन में एक ऐसी अमित छाप छोड़ दी जो उस पीढ़ी के दिलों के अलावा इस पीढ़ी के दिलों में भी हमेशा रहेगी। अभिनेता गोवर्धन असरानी जिन्हे आमतौर पर एक कॉमेडियन एक्टर माना जाता था, बीते सोमवार को मुंबई में उनका निधन हो गया। जानकारी के अनुसार वह पिछले लम्बे समय से बिमारी से ग्रसित थे। लगभग 4 दिनों पहले वह जुहू के एक निजी अस्पताल में भर्ती हुए थे और डॉक्टरों ने उनके लंग्स में कुछ दिक्कतें बताई थी। 20 अक्टूबर को दोपहर लगभर 4 बजे के करीब उन्होंने अंतिम सांस ली। प्राप्त जानकारी के अनुसार उनके पार्थिव शरीर को पंचतत्व में विलीन कर दिया गया है। लेकिन जो यादें और इतिहास उन्होंने हिंदी फिल्म जगत में छोड़ी है वह कभी विलीन नहीं हो पाएगी।
बड़े ही शांत तरीके से उनके पार्थिव शरीर की अंत्येष्टि कर दी गयी जिसपर उनके परिवार वालों का कहना था की दिवंगत असरानी जी को ही शान्ति पसंद थी और वो कोई तमाशा करने के सख्त खिलाफ थे। यही कारण था की जल्दी ही उनके पार्थिव शरीर की अंत्येष्टि कर दी गयी। जल्द ही उनके परिवार की ओर से उनकी आत्मा की शांति को लेकर प्रार्थना के लिए कोई बयान दिया जा सकता है।
सिनेमा जगत में उन्होंने अब तक लगभग 350 से भी ज़्यादा फिल्मों में काम किया था। एक समय तो ऐसा आया की रोल उनके व्यक्तित्व और अभिनय को देख कर लिखा जाने लगा। हालांकि वह कभी लीड रोल में काम करते नहीं दिखे लेकिन उसके बावजूद वह एक ऐसे अभिनेता के रूप में उभरे की उनके बिना लीड रोल वाला एक्टर भी फीका पड़ सकता था। 70 के दशक से उनके अभिनय के सितारे आसमान को छूने लगे। छोटी सी बात, चुपके चुपके, अभिमान, परिचय और शोले जैसी फिल्मों ने उनकी ख्याति बुलंदियों पर पहुंचा दी। आपने “हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं” वाला डायलाग तो सूना ही होगा, जो न सिर्फ एक डायलाग बल्कि एक पहचान बन चुका है और हिंदी सिनेमा की जब कभी भी बात की जाएगी तो यह अंग्रेज़ों के ज़माने का जेलर हमेशा याद आएगा।
70 के दशक से लेकर कुछ सालों पहले की “धमाल” फिल्म तक, उनके अभिनय ने नए कलाकारों को एक रास्ता दिखाया। कलाकरों को किस तरह उनके किरदार समझने चाहिए, किस तरह उनके हाव भाव होने चाहिए और किस तरह उसे परदे पर पेश आना चाहिए ये सारी कलाएं उनके अंदर कूट-कूटकर भरी थी। यही कारण है की इतने लम्बे समय तक फिल्म जगत में होने के बावजूद उनकी पहचान मिट नहीं पाई और उन्होंने एक लम्बी पारी खेली। उनकी कमी भारतीय फिल्म जगत और नए अभिनेताओं को हमेशा खलेगी।
